कांटा काबर बिछियाथे Kanta Kabar Bichhiyathe Lyrics – Kantikartik

कांटा काबर बिछियाथे

Kanta Kabar Bichhiyathe Lyrics

Kantikartik Yadav CG Song

 

  • गीत – कांटा काबर बिछियाथे
  • स्वर – कांतिकार्तिक यादव
  • गीतकार – गुरूदेव मौनी लाला जी
  • संगीत – ओपी देवांगन
  • प्रकार – छत्तीसगढ़ी चिंतन गीत
  • लेबल – कोक क्रिएशन

स्थायी
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे

काए पाए हे करम म अपन
काए पाए हे करम म अपन
टीप हा करिया जनाथे
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे

अंतरा 1
बेरा बखत के भेद हरे गा
गुनत सुध हा समाए
कांटा के टीप हा करिया हावै
गड़त तन बिछियाए

कहावा ले कटही कांटा सिरजे
रूख गजब उम्भियाए
बिन जनत के रहबद बिखरे
जनत के रूख मुरझाए
जग ये हावै जम्मो जीव बर
जग ये हावै जम्मो जीव बर
ये गुण दोष कहां ले आथे
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे

अंतरा 2
विष पान के उही बेरा म
गड़ले गंवाथे गा भुईया म
जेन जीव हर गड़ले ला पाए
उही जीव कटही हे दुनिया म

भुईया रग म गिरे बिख
उही रूख ओखर बईहां म
सरी जीव के ढंस डंक
बिछियात सोवाथे सईया म
छल अउ प्रपंच के कथा कहत हे
छल अउ प्रपंच के कथा कहत हे
सकुनी कभु का पुजाथे
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे

अंतरा 3
बेरा बेरा म इहीं कांटा के
गुण हा अड़बड भारी हे
नियत नीती के दांव पेंच म
इही मन हर तो खिलाड़ी हे

रूंधवा बंधना म अघुवा राखे
ये कईसन बिमारी हे
पउरी गड़त जब्बऱ बिछियाथे
कांतिकार्तिक मरम ला समझे
कांतिकार्तिक मरम ला समझे
मौनी लाला गोठियाथे
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे

काए पाए हे करम म अपन
काए पाए हे करम म अपन
टीप हा करिया जनाथे
कांटा काबर बिछियाथे रे संगी
कांटा काबर बिछियाथे

Leave a comment

x
error: Content is protected !!